أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ١
﴿الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ٢ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ٣ مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ ٤ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ٥ اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ ٦ صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ ٧﴾
7 बार सूरतुल-फातिह़ा पढ़ना
मैं अल्लाह की शरण में आता हूँ धिक्कारे हुए शैतान से
शुरू अल्लाह के नाम से जो असीम दयावान्, अत्यंत दयालु है
“सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सर्व संसार का पालनहार है असीम दयावान्, अत्यंत दयालु है बदले के दिन का मालिक है हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद माँगते हैं हमें सीधे मार्ग पर चला उन लोगों का मार्ग जिनपर तूने अनुग्रह किया, उन लोगों का (मार्ग) नहीं जिनपर प्रकोप अवतिरत हुआ और न पथभ्रष्टों का”