«اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ النَّارِ وَمِنْ عَذَابِ النَّارِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ القَبْرِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ القَبْرِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الغِنَى، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الفَقْرِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ المَسِيحِ الدَّجَّالِ»
“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिन् फ़ित्नतिन्नारि व-मिन अज़ाबिन्नार, व अऊज़ो बिका मिन् फ़ित्नतिल क़ब्र, व-अऊज़ो बिका मिन् अज़ाबिल-क़ब्र, व-अऊज़ो बिका मिन् फ़ित्नतिल ग़िना, व-अऊज़ो बिका मिन् फ़ित्नतिल फ़क़्र, व-अऊज़ो बिका मिन फ़ित्नतिल मसीह़िद्-दज्जाल”
“ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह में आता हूँ जहन्नम के फ़ित्ने (परीक्षण) से और जहन्नम की यातना से, तथा मैं तेरी शरण लेता हूँ क़ब्र के फ़ित्ने (परीक्षण) से और तेरी शरण लेता हूँ क़ब्र की यातना से, तथा मैं तेरी शरण चाहता हूँ मालदारी के फ़ित्ने (परीक्षण) से और मैं तेरी शरण में आता हूँ ग़रीबी के फ़ित्ने (परीक्षण) से तथा मैं तेरी पनाह माँगता हूँ मसीह दज्जाल के फ़ित्ने (परीक्षण) से”