«اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْعَجْزِ، وَالْكَسَلِ، وَالْجُبْنِ، وَالْبُخْلِ، وَالْهَرَمِ، وَعَذَابِ الْقَبْرِ اللهُمَّ آتِ نَفْسِي تَقْوَاهَا، وَزَكِّهَا أَنْتَ خَيْرُ مَنْ زَكَّاهَا، أَنْتَ وَلِيُّهَا وَمَوْلَاهَا، اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عِلْمٍ لَا يَنْفَعُ، وَمِنْ قَلْبٍ لَا يَخْشَعُ، وَمِنْ نَفْسٍ لَا تَشْبَعُ، وَمِنْ دَعْوَةٍ لَا يُسْتَجَابُ لَهَا»
“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल-अज्ज़ि, वल-क-सलि, वल-जुब्नि, वल-बुख़्लि, वल-हरमि, व अज़ाबल-क़ब्रि। अल्लाहुम्मा आति नफ़्सी तक़्वाहा, व ज़क्किहा अन्ता ख़ैरु मन् ज़क्काहा, अन्ता वलिय्युहा व मौलाहा, अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिन् इल्मिन ला यन्फ़ओ, व मिन क़ल्बिन ला यख़्शओ, व मिन नफ़्सिन ला तश्बओ, व मिन दा’वतिन ला युस्तजाबु लहा”
“ऐ अल्लाह! मैं विवशता (बे-बसी), आलस्य, कायरता, कंजूसी, बुढ़ापा और क़ब्र की यातना से तेरी शरण लेता हूँ ऐ अल्लाह! मेरी आत्मा को परहेज़गारी प्रदान कर और उसे पवित्र कर दे, तू ही उसको बेहतर पवित्र करने वाला है, तू ही उसका संरक्षक और स्वामी है ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण चाहता हूँ ऐसे ज्ञान से जो उपयोगी नहीं है, और ऐसे दिल से जो डरता नहीं है, और ऐसी आत्मा से जो संतुष्ट नहीं होती है और ऐसी दुआ से जो क़बूल नहीं की जाती”