«اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنَ الْخَيْرِ كُلِّهِ عَاجِلِهِ وَآجِلِهِ، مَا عَلِمْتُ مِنْهُ وَمَا لَمْ أَعْلَمْ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ الشَّرِّ كُلِّهِ، عَاجِلِهِ وَآَجِلِهِ مَا عَلِمْتُ مِنْهُ، وَمَا لَمْ أَعْلَمْ، اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَأَلَكَ عَبْدُكَ وَنَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ (صلی الله علیه وسلم)، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا عَاذَ مِنْهُ عَبْدُكَ وَنَبِيُّكَ، اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْجَنَّةَ وَمَا قَرَّبَ إِلَيْهَا مِنْ قَوْلٍ أَوْ عَمَلٍ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ النَّارِ وَمَا قَرَّبَ إِلَيْهَا مِنْ قَوْلٍ أَوْ عَمَلٍ، وَأَسْأَلُكَ أَنْ تَجْعَلَ كُلَّ قَضَاءٍ تَقْضِيهِ لِي خَيْرًا»
{وهو من جوامع الدعاء وكوامله}
“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्-अलुका मिनल् ख़ैरि कुल्लिहि, आ’जिलिहि व आजिलिहि, मा अलिम्तु मिन्हु, वमा लम् आ’लम, व अऊज़ो बिका मिनश्-शर्रि कुल्लिहि, आ’जिलिहि व आजिलिहि, मा अलिम्तु मिन्हु, वमा लम् आ’लम, अल्लाहुम्मा इन्नी अस्-अलुका मिन् खैरि मा स-अ-लका अब्दुका व नबिय्युका मुहम्मदुन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, व-अऊज़ो बिका मिन् शर्रि मा आज़ा मिन्हु अब्दुका व नबिय्युका, अल्लाहुम्मा इन्नी अस्-अलुका अल्-जन्नह वमा क़र्रबा इलैहा मिन् क़ौलिन औ अमल, व-अऊज़ो बिका मिनन्-नारि वमा क़र्रबा इलैहा मिन् क़ौलिन औ अमल, व अस्-अलुका अन् तज्अला कुल्ला क़ज़ाइन तक़ज़ीहे ली खैरा”
“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे लोक और परलोक की प्रत्येक भलाई माँगता हूँ, जो मुझे मालूम है और जो मैं नहीं जानता हूँ तथा मैं लोक और परलोक की प्रत्येक बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ, जो मुझे मालूम है और जो मैं नहीं जानता हूँ ऐ अल्लाह! मैं तुझसे उस भलाई का प्रश्न करता हूँ जो तेरे बंदे और पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तुझसे माँगी है, और मैं उस बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ जिससे तेरे दास और पैगंबर ने शरण माँगी है ऐ अल्लाह! मैं तुझसे जन्नत और उससे क़रीब कर देनेवाले कथन और कर्म का सवाल करता हूँ, तथा मैं जहन्नम और उससे क़रीब कर देनेवाले कथन और कर्म से तेरी शरण चाहता हूँ और मैं तुझसे प्रश्न करता हूँ कि हर वह चीज़ जिसका तू मेरे लिए फैसला करता है, उसे बेहतर बना दे”
(यह व्यापक और परिपूर्ण दुआओं में से है)