«اللَّهُمَّ بِعِلْمِكَ الْغَيْبَ، وَقُدْرَتِكَ عَلَى الْخَلْقِ، أَحْيِنِي مَا عَلِمْتَ الْحَيَاةَ خَيْرًا لِي، وَتَوَفَّنِي إِذَا عَلِمْتَ الْوَفَاةَ خَيْرًا لِي، وَأَسْأَلُكَ خَشْيَتَكَ فِي الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، وَكَلِمَةَ الْإِخْلَاصِ فِي الرِّضَا وَالْغَضَبِ، وَأَسْأَلُكَ نَعِيمًا لَا يَنْفَدُ، وَقُرَّةَ عَيْنٍ لَا تَنْقَطِعُ، وَأَسْأَلُكَ الرِّضَاءَ بِالْقَضَاءِ، وَبَرْدَ الْعَيْشِ بَعْدَ الْمَوْتِ، وَلَذَّةَ النَّظَرِ إِلَى وَجْهِكَ، وَالشَّوْقَ إِلَى لِقَائِكَ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ ضَرَّاءَ مُضِرَّةٍ، وَفِتْنَةٍ مُضِلَّةٍ، اللَّهُمَّ زَيِّنَّا بِزِينَةِ الْإِيمَانِ، وَاجْعَلْنَا هُدَاةً مُهْتَدِينَ»
“अल्लाहुम्मा बि-इल्मिकल ग़ैबा, व क़ुद्रतिका अलल-ख़ल्क़ि, अह़्येनी मा अलिम्तल ह़याता ख़ैरन ली, व-तवफ़्फ़नी इज़ा अलिम्तल वफ़ाता ख़ैरन ली, व-अस्अलुका ख़श्यतका फिल-ग़ैबि वश्शहादति, व-कलिमतल इख़्लासि फ़िर्रिज़ा वल-ग़ज़बि, व-अस्अलुका नईमन् ला यन्फ़दु, व-क़ुर्रता ऐनिन ला तन्क़तिओ, व-अस्अलुकर्रिज़ाआ बिल-क़ज़ाए, व-बर्दल-ऐशि बा’दल-मौति, व लज़्ज़तन-नज़्रि इला वज्हिका, वश्शौक़ा इला लिक़ाइका, व-अऊज़ु बिका मिन ज़र्राआ मुज़िर्रतिन, व-फ़ित्नतिन मुज़िल्लतिन, अल्लाहुम्मा ज़ैयिन्ना बि-ज़ीनतिल-ईमान, वज्-अल्ना हुदातन् मुह्तदीन”
“ऐ अल्लाह! मैं तेरे ग़ैब (प्रोक्ष) को जानने और मख़लूक़ पर तेरी क्षमता के माध्यम से सवाल करता हूँ कि मुझे उस समय तक जीवित रख जब तक तू जीवन को मेरे लिए बेहतर जाने, और मुझे उस समय मृत्यु दे दे जब मृत्यु को मेरे लिए बेहतर जाने मैं तुझसे प्रोक्ष और प्रत्यक्ष में तेरे भय का तथा प्रसन्नता और क्रोध में सत्य बात कहने का सवाल करता हूँ, और मैं तुझसे ऐसी नेमत का सवाल करता हूँ जो कभी खत्म न हो, और मैं तुझसे आँखों की ऐसी ठंडक माँगता हूँ जो बाधित न हो, और मैं तुझसे तेरे फैसले पर संतुष्टि, मृत्यु के बाद सुखद जीवन, तेरे चेहरे की ओर देखने का आनंद और तुझसे मिलने की लालसा का सवाल करता हूँ और मैं हानिकारक विपत्ति (दुर्भाग्य) और भ्रामक फित्ने (परीक्षण) से तेरी शरण लेता हूँ ऐ अल्लाह! हमें ईमान की शोभा से सुसज्जित कर दे और हमें मार्गदर्शित मार्गदर्शक बना दे”