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«اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الثَّبَاتَ فِي الْأَمْرِ، وَالْعَزِيمَةَ عَلَى الرُّشْدِ، وَأَسْأَلُكَ مُوجِبَاتِ رَحْمَتِكَ، وَعَزَائِمَ مَغْفِرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ شُكْرَ نِعْمَتِكَ، وَحُسْنَ عِبَادَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ قَلْبًا سَلِيمًا، وَلِسَانًا صَادِقًا، وَأَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا تَعْلَمُ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا تَعْلَمُ، وَأَسْتَغْفِرُكَ لِمَا تَعْلَمُ، إِنَّكَ أَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ»
{في الحديث أنها خير من كنز الذهب والفضة}

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुकस्-सबाता फिल-अम्र, वल-अज़ीमता अलर्-रुश्द, व-अस्अलुका मूजिबाति रह़्मतिक, व-अज़ाइमा मग़-फिरतिक, व-अस्अलुका शुक्रा ने’मतिक, व-ह़ुस्ना इबादतिक, व-अस्अलुका क़ल्बन सलीमा, व-लिसानन सादिक़ा, व-अस्अलुका मिन ख़ैरि मा ता’लम, व-अऊज़ो बिका मिन् शर्रि मा ता’लम, व-अस्तग़फ़िरुका लिमा ता’लम, इन्नका अन्ता अल्लामुल-ग़ुयूब”

“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे धर्म में स्थिरता और संमार्ग पर दृढ़ता (का सामर्थ्य) माँगता हूँ तथा मैं तुझसे तेरी दया के कारणों और तेरी क्षमा को सुनिश्चित करने वाले कर्मों एवं कथनों का सवाल करता हूँ मैं तुझसे तेरी नेमत का धन्यवाद करने और तेरी अच्छे ढंग से उपासना करने का सामर्थ्य माँगता हूँ मैं तुझसे शुद्ध हृदय और सच्ची ज़बान का सवाल करता हूँ मैं तुझसे वह भलाई माँगता हूँ, जो तू जानता और उस बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ जो तेरे ज्ञान में है, तथा मैं तुझसे उन सभी पापों के लिए क्षमा याचना करता हूँ, जिन्हें तू जानता है निःसंदेह तू प्रोक्ष (ग़ैब की) बातों का जानने वाला है”

(हदीस में है कि ये (शब्द) सोने और चाँदी के ख़ज़ाने से बेहतर हैं)

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