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«اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ فِعْلَ الخَيْرَاتِ، وَتَرْكَ الْمُنْكَرَاتِ، وَحُبَّ الْمَسَاكِينِ، وَأَنْ تَغْفِرَ لِي وَتَرْحَمَنِي، وَإِذَا أَرَدْتَ فِتْنَةً فِي قَوْمٍ فَتَوَفَّنِي غَيْرَ مَفْتُونٍ، وَأَسْأَلُكَ حُبَّكَ وَحُبَّ مَنْ يُحِبُّكَ، وَحُبَّ عَمَلٍ يُقَرِّبُ إِلَى حُبِّكَ»
{قال صلى الله عليه وسلم عن هذه الدعوات: إِنَّهَا حَقٌّ فَادْرُسُوهَا ثُمَّ تَعَلَّمُوهَا}

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुका फे’लल-ख़ैराति, व तर्कल-मुन्कराति, व हुब्बल मसाकीनि, व-अन् तग़फ़िरा ली व-तर-ह-मनी, व-इज़ा अरद्ता फ़ित्नतन फ़ी क़ौमिन फ़-तवफ़्फ़नी ग़ैरा मफ़्तूनिन, व-अस्अलुका ह़ुब्बका व ह़ुब्बा मन् युह़िब्बुका, व ह़ुब्बा अमलिन युक़र्रिबो इला ह़ुब्बिका”

“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे अच्छे कामों के करने, बुरे कामों के त्यागने और मिस्कीनों (ग़रीबों) से प्यार करने का सामर्थ्य माँगता हूँ, और यह कि तू मुझे क्षमा कर दे और मुझ पर दया कर, और जब किसी समुदाय को परीक्षा में डालना चाहे, तो मुझे परीक्षा में डाले बिना मृत्यु दे दे तथा मैं तुझसे तेरे प्रेम, और तुझसे प्रेम करने वाले के प्रेम और उस कार्य के प्रेम का प्रश्न करता हूँ, जो तेरे प्रेम से क़रीब करने वाला है”

(नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन दुआओं के बारे में फरमाया : ये सत्य हैं इसलिए इनका अध्ययन करो और इन्हें सीखो)

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