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«اللهُمَّ أَصْلِحْ لِي دِينِي الَّذِي هُوَ عِصْمَةُ أَمْرِي، وَأَصْلِحْ لِي دُنْيَايَ الَّتِي فِيهَا مَعَاشِي، وَأَصْلِحْ لِي آخِرَتِي الَّتِي فِيهَا مَعَادِي، وَاجْعَلِ الْحَيَاةَ زِيَادَةً لِي فِي كُلِّ خَيْرٍ، وَاجْعَلِ الْمَوْتَ رَاحَةً لِي مِنْ كُلِّ شَرٍّ»

“अल्लाहुम्मा अस्लिह़् ली दीनी अल्लज़ी हुवा इस्मतो अम्री, व-अस्लिह़् ली दुन्याया अल्लती फीहा मआशी, व-अस्लिह़् ली आख़िरती अल्लती फीहा मआदी, वज्-अलिल् ह़याता ज़ियादतन ली फी कुल्लि ख़ैर, वज-अलिल-मौता राह़तन ली मिन् कुल्लि शर्र”

“ऐ अल्लाह मेरे लिए मेरे धर्म को सुधार दे जो कि मेरे मामले का बचाव है, और मेरे लिए मेरी दुनिया को सुधार दे जिसके अन्दर मेरी जीविका (रहन—सहन) है, और मेरे लिए मेरी आख़िरत (परलोक) को सुधार दे जिसकी ओर मुझे लौटना है, और मेरे लिए जीवन को प्रत्येक भलाई में वृद्धि का कारण बना दे, तथा मृत्यु को मेरे लिए प्रत्येक बुराई से मुक्ति का कारण बना दे”

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