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«اللهُمَّ أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَبِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ لَا أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ»
{وهو دعاء يُشرع قوله في السجود}

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बि-रिज़ाका मिन् सख़तिका, व बि-मुआफातिका मिन उक़ूबतिका, व अऊज़ो बिका मिन्का, ला उह़्सी सनाअन अलैका, अन्ता कमा अस्नैता अला नफ़्सिका

“ऐ अल्लाह! मैं तेरे क्रोध से तेरी प्रसन्नता की और तेरी सज़ा से तेरी क्षमा की शरण चाहता हूँ तथा मैं तुझसे तेरी ही शरण चाहता हूँ मैं तेरी संपूर्ण प्रशंसा करने की क्षमता नहीं रखता तू उसी तरह है जैसे तूने स्वयं की प्रशंसा की है”

(यह दुआ सज्दे में पढ़ना धर्मसंगत है)

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