«اللهُمَّ رَبَّ جَبْرَائِيلَ، وَمِيكَائِيلَ، وَإِسْرَافِيلَ، فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ، عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، أَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ، اهْدِنِي لِمَا اخْتُلِفَ فِيهِ مِنَ الْحَقِّ بِإِذْنِكَ، إِنَّكَ تَهْدِي مَنْ تَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ»
{وهو من أدعية استفتاح الصلاة، خاصة في صلاة قيام الليل}
{ويقال عند التباس الحق وورود الشبهة على القلب}
“अल्लाहुम्मा रब्बा जिबराईला व मीकाईला व इसराफीला, फ़ातिरस्-समावाति वल-अर्ज़ि, आलिमल्-ग़ैबि वश्-शहादति, अन्ता तह़्कुमु बैना इबादिका फीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफ़ून, इह्दिनी लिमख़्-तुलिफ़ा फीहि मिनल्-हक्क़ि बि-इज़्निका, इन्नका तह्दी मन् तशाओ इला सिरातिम-मुस्तक़ीम”
“ऐ अल्लाह! ऐ जिबराईल, मीकाईल और इसराफ़ील के मालिक! आकाशों और धरती के रचयिता, परोक्ष और प्रत्यक्ष के जानने वाले! तू ही अपने बंदों के बीच उस चीज़ के बारे में फैसला करेगा, जिसमें वे मतभेद किया करते थे हक़ की जिस बात में मतभेद हो गया है तू अपनी अनुमति से मुझे सीधा मार्ग दिखा निःसंदेह तू जिसे चाहता है, सीधा मार्ग दिखाता है”
(यह नमाज़ शुरू करने की दुआओं में से है, विशेष रूप से रात की नमाज़ – तहज्जुद - में) (तथा इसे सत्य के भ्रमित होने और दिल पर संदेह प्रकट होने के समय भी पढ़ा जाता है)