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«اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ الْبُخْلِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ الْجُبْنِ وَأَعُوذُ بِكَ أَنْ أُرَدَّ إِلَى أَرْذَلِ الْعُمُرِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الدُّنْيَا وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ»
{وهو دعاء يُشرع قوله في التشهد الأخير قبل السلام}

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल-बुख़्लि, व अऊज़ो बिका मिनल-जुब्नि, व अऊज़ो बिका मिन् अन् उरद्दा इला अरज़लिल्-उमुरि, व अऊज़ो बिका मिन् फित्नतिद्-दुन्या, व अऊज़ो बिका मिन् अज़ाबिल-क़ब्र

“ऐ अल्लाह! मैं कंजूसी से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं कायरता से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं इससे तेरी पनाह चाहता हूँ कि उम्र के सबसे अपमानजनक हिस्से (बुढ़ापे) की ओर लौटाया जाऊँ, और मैं दुनिया के फित्ने (परीक्षण) से तेरी पनाह चाहता हूँ और मैं तेरी पनाह चाहता हूँ क़ब्र की यातना से”

(यह दुआ अंतिम तशह्हुद में सलाम फेरने से पहले पढ़ना धर्मसंगत है)

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