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«اللهُمَّ اغْفِرْ لِي مَا قَدَّمْتُ وَمَا أَخَّرْتُ، وَمَا أَسْرَرْتُ وَمَا أَعْلَنْتُ، وَمَا أَسْرَفْتُ، وَمَا أَنْتَ أَعْلَمُ بِهِ مِنِّي، أَنْتَ الْمُقَدِّمُ وَأَنْتَ الْمُؤَخِّرُ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ»
{وهو دعاء يُشرع قوله في التشهد الأخير قبل السلام}

“अल्लाहुम्मग़्-फ़िर् ली मा क़द्दम्तु वमा अख़्ख़रतु, वमा अस-रर्तु वमा-आलन्तु, वमा अस्-रफ़्तु, वमा अन्ता आ’लमु बिही मिन्नी, अन्तल मुक़द्दिमु, व अन्तल मुअख़्ख़िरु, ला इलाहा इल्ला अन्ता”

“ऐ अल्लाह! मुझे क्षमा कर दे, जो मैंने पहले किया और जो मैंने पीछे किया, और जो मैंने छिपा कर किया और जो मैंने दिखाकर किया, और जो मैंने हद से बढ़कर किया, और जिसे तू मुझसे अधिक जानता है तू ही आगे करने वाला और तू ही पीछे करने वाला है तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं”

(यह दुआ अंतिम तशह्हुद में सलाम फेरने से पहले पढ़ना धर्मसंगत है)

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