«اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي لاَ إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ، خَلَقْتَنِي وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَيَّ، وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي فَاغْفِرْ لِي، فَإِنَّهُ لاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ»
“अल्लाहुम्मा अन्ता रब्बी ला इलाहा इल्ला अन्ता, खलक़्तनी व अना अब्दुका, व अना अला अह्दिका व वा’दिका मस्तता’तु, अऊज़ु बिका मिन् शर्रि मा सना’तु, अबूओ लका बि-ने’मतिका अलय्या, व अबूओ लका बि-ज़ंबी फग़्फ़िर् ली, फ़-इन्नहु ला यग़्फ़िरुज़्-ज़ुनूबा इल्ला अन्ता”
“ऐ अल्लाह तू ही मेरा पालनहार है तेरे सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं तूने मुझे पैदा किया और मैं तेरा बंदा हूँ, और मैं अपनी शक्ति भर तुझसे की हुई प्रतिज्ञा और तेरे वादे पर क़ायम हूँ मैंने जो कुछ किया उसकी बुराई से तेरी शरण में आता हूँ मैं अपने ऊपर तेरी नेमत का इक़रार करता हूँ और मैं तेरे समक्ष अपने गुनाहों को स्वीकार करता हूँ अतः मुझे क्षमा कर दे क्योंकि तेरे सिवा कोई दूसरा गुनाहों को नहीं क्षमा कर सकता”