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«اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ بِأَنِّي أَشْهَدُ أَنَّكَ أَنْتَ اللَّهُ لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ الأَحَدُ الصَّمَدُ، الَّذِي لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ»
{ورد في الحديث أن هذا الدعاء هو اسم الله الأعظم الذي إذا دُعي به أجاب وإذا سُئل به أعطى}

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुका बि-अन्नी अश्हदु अन्नका अन्तल्लाहु ला इलाहा इल्ला अन्तल-अह़दुस-समद, अल्लज़ी लम यलिद वलम यूलद् वलम यकुन् लहू कुफ़ुवन अह़द”

“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे माँगता हूँ इस बात के माध्यम से कि मैं गवाही देता हूँ कि तू ही अल्लाह है, तेरे सिवा कोई अन्य उपासना के योग्य नहीं तू अकेला और बेनियाज़ है, जिसने न किसी को जना और न वह किसी से जना गया और न उसका कोई समकक्ष है”

(हदीस में यह उल्लेख किया गया है कि यह दुआ अल्लाह का “इस्मे आज़म” यानी सबसे बड़ा नाम है कि जिसके द्वारा अगर दुआ की जाए तो अल्लाह क़बूल करता है और यदि कुछ माँगा जाए, तो वह प्रदान करता है)

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