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रुक़्या (झाड़-फूँक) में कुछ शर्तों और चेतावनियोँ का ध्यान रखना चाहिए, जो ये हैं :

1- रुक़्या क़ुरआन और सुन्नत से प्रमाणित हो, तथा वह अपनी विधि और अपने शब्दों में शिर्क, बिद्अतों और निषिद्ध चीज़ों से दूर हो

2- मुसलमान अपने पालनहार से संबंधित हो और उस पर भरोसा रखे, तथा इस बात को अच्छी तरह से जान ले कि रुक़्या का प्रभाव केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान की अनुमति से होता है

3- उसे अनुभव करने के रूप में रुक़्या नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे इसके प्रभाव पर ईमान (दृढ़ विश्वास) रखना चाहिए अतः रुक़्या करने वाले को और जिसपर रुक़्या किया जा रहा है, दोनों को रुक़्या के प्रभाव और उसके द्वारा ठीक होने पर ईमान (विश्वास) रखना चाहिए

4- क़ुरआन करीम की सभी आयतें शिफा (आरोग्य) हैं सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया : (وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ) “और हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं, वह ईमान वालों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) तथा दया है” (सूरतुल-इसरा : 82), परंतु जिसके बारे में वर्णित है कि वह रुक़्या है, उसके द्वारा रुक़्या करना सर्वोचित है

5- “रोगी के लिए अपना रुक़्या स्वयं करना बेहतर है क्योंकि यह उसके लिए अधिक लाभकारी है और अपने पालनहार के सामने अपनी ग़रीबी और ज़रूरत को प्रकट करने में अधिक सच्चाई का पात्र है, क्योंकि दिल की उपस्थिति और इरादे की शुद्धि का रुक़्या पर प्रभाव पड़ता है

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