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वह अपनी दुआ को गुप्त रखे और उसे ज़ोर से न करे; क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है : ﴿ادْعُواْ رَبَّكُمْ تَضَرُّعاً وَخُفْيَةً) “अपने रब को गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके पुकारो” [अल-आराफ : 55], और दुआ को गुप्त रखना इख़्लास के अधिक निकट है इसी कारण अल्लाह तआला ने ज़करिया अलैहिस्सलाम की दुआ की इस तरह प्रशंसा की है : ﴿ إِذْ نَادَى رَبَّهُ نِدَاء خَفِيّاً ) “जब उसने अपने पालनहार को गुप्त रूप से पुकारा” [मरियम : 3] तफ़्सीर के इमामों के कथनों में से एक के अनुसार, उन्होंने इख़्लास की ख़ातिर ऐसा किया था