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(اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي دِينِي وَدُنْيَايَ، وَأَهْلِي وَمَالِي، اللَّهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي، وَآمِنْ رَوْعَاتِي، اللَّهُمَّ احْفَظْنِي مِنْ بَيْنِ يَدَيَّ وَمِنْ خَلْفِي، وَعَنْ يَمِينِي وَعَنْ شِمَالِي، وَمِنْ فَوْقِي، وَأَعُوذُ بِعَظَمَتِكَ أَنْ أُغْتَالَ مِنْ تَحْتِي)

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्-अलुकल आफ़ियह, फ़िद्दुन्या वल-आख़िरह, अलाहुम्मा इन्नी अस्-अलुकल् अफ़्वा वल आफ़ियह फ़ी दीनी व दुन्याया व अह्ली व माली, अल्लाहुम्मस्-तुर औराती व आमिन रौआती, अल्लाहुम्मह़्-फ़ज़्नी मिन् बैने यदय्या, व मिन् ख़ल्फ़ी, व अन् यमीनी, व अन् शिमाली, व मिन् फ़ौक़ी, व अऊज़ो बि-अज़मतिका अन् उग़ताला मिन् तह़्ती”

“ऐ अल्लाह! मैं तुझसे दुनिया और आख़िरत में आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ ऐ अल्लाह! मैं तुझसे क्षमा और अपने दीन, अपनी दुनिया, अपने परिवार और अपने धन में आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ ऐ अल्लाह! मेरी पर्दे वाली चीज़ों (खामियों) पर पर्दा डाल दे और मेरी घबराहटों को सुकून (शांति) में बदल दे ऐ अल्लाह! मेरे सामने से, मेरे पीछे से, मेरे दाएँ से, मेरे बाएँ से तथा मेरे ऊपर से मेरी ह़िफ़ाज़त कर, और मैं इस बात से तेरी अ़ज़मत (महानता) की शरण लेता हूँ कि अचानक अपने नीचे से विनष्ट कर दिया जाऊँ”

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